जिस वक़्त तू बे-नक़ाब आवे होगा कोई जिस को ताब आवे काफ़ी है नक़ाब-ए-ज़ुल्फ़ मुँह पर आशिक़ से अगर हिजाब आवे क्यूँकर कहे कोई हाल तुझ से हर बात में जो इताब आवे क़ासिद से कहा है वक़्त-ए-रुख़्सत जो वो बुत-ए-बे-हिजाब आवे ले आइयो गर जवाब देवे लाज़िम है कि तू शिताब आवे ऐ जाँ-ब-लब रसीदा इतना रहना है कि ता जवाब आवे 'बेदार' को तुझ बिन ऐ दिल-आराम होता ही नहीं कि ख़्वाब आवे