जिस दिन तुम आ के हम से हम-आग़ोश हो गए शिकवे जो दिल में थे सो फ़रामोश हो गए साक़ी नहीं है साग़र-ए-मय की हमें तलब आँखें ही तेरी देख के बेहोश हो गए सुनने को हुस्न-ए-यार की ख़ूबी ब-रंग-ए-गुल आज़ा मिरे बदन के सभी गोश हो गए करते थे अपने हुस्न की तारीफ़ गुल-रुख़ाँ उस लाला-रू को देख के ख़ामोश हो गए ऐ जान देखते ही मुझे दूर से तुम आज ये कौन सी अदा थी कि रू-पोश हो गए रहते थे बे-हिजाब मिरे पास जिन दिनों वे रोज़ हाए तुम को फ़रामोश हो गए दुनिया ओ दीन की न रही हम को कुछ ख़बर होते ही उस के सामने बेहोश हो गए 'बेदार' बस-कि रोए हम उस गुल की याद में सर-ता-क़दम सरिश्क से गुल-पोश हो गए