जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे न छोड़े मोहब्बत दम-ए-मर्ग तक जिसे यार-ए-जानी सूँ यारी लगे न होवे उसे जग में हरगिज़ क़रार जिसे इश्क़ की बे-क़रारी लगे हर इक वक़्त मुझ आशिक़-ए-पाक कूँ प्यारे तिरी बात प्यारी लगे 'वली' कूँ कहे तू अगर यक बचन रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे