जिसे तू ख़ामुशी समझा है इज़्तिराब समझ मैं कर रहा हूँ ये तुझ से जो इज्तिनाब समझ हमारा होना न होना अगर बराबर है किसी को आएगा कैसे तिरा हिसाब समझ मैं अच्छा बनता हुआ देख निस्फ़ रह गया हूँ मैं अब भी अच्छा नहीं हूँ तो ले ख़राब समझ ख़िरद की मान के समझा था कुछ हक़ीक़त को जुनूँ ब-ज़िद है हक़ीक़त को भी सराब समझ जो तेरी बात पे कुछ भी नहीं कहा मैं ने इसी को काफ़ी समझ ले यही जवाब समझ कोई तो ख़्वाब में आ कर कहे कि मेरे हो कोई तो ख़्वाब सुनाए कहे कि ख़्वाब समझ ये ख़ुश-नसीबी हर इक को कहाँ मयस्सर है 'सग़ीर' साथ है तेरे तो ये सवाब समझ