कहाँ से दरमियाँ ले आए हो जो सब नहीं होता मोहब्बत का तो दुनिया में कोई मज़हब नहीं होता मुझे तुम देखते रहते हो लेकिन कुछ नहीं कहते मैं कैसे मान लूँ इस का कोई मतलब नहीं होता हम अपने दिल के बारे में बता सकते नहीं कुछ भी कि जाने कब ये होता है न-जाने कब नहीं होता तअल्लुक़ जब्र समझें और निभाते ही चले जाएँ कोई तो हद भी होती है ये हम से अब नहीं होता तिरे कहने पे सर के बल चले आते हैं हम वर्ना किसी से कौन मिलता है अगर मतलब नहीं होता 'सग़ीर' ओहदे वग़ैरा हैं ज़रूरत और लोगों की फ़क़ीरी में किसी का कोई भी मंसब नहीं होता