जिस्म के इस खंडर की तन्हाई और ये रात भर की तन्हाई एक तस्वीर भी नहीं घर में उफ़ ये दीवार-ओ-दर की तन्हाई कोई आहट न कोई साया है हर क़दम है सफ़र की तन्हाई एक आलम को है समेटे हुए मेरी फ़िक्र-ए-नज़र की तन्हाई मेरी साँसों में बस गई जैसे जान-ओ-दिल की जिगर की तन्हाई कितनी बेज़ार है ये मौसम से समर-आवर शजर की तन्हाई देखता है निकल के सूरज रोज़ ये मिरे बाम-ओ-दर की तन्हाई रात दिन रोते है दर-ओ-दीवार खा गई मुझ को घर की तन्हाई ज़िंदगी के सफ़र में ऐ 'अर्पित' देख ली दर-ब-दर की तन्हाई