ऐ सनम तालिब नहीं वो ख़ुल्द से गुलज़ार का मुब्तला को चाहिए साया तिरी दीवार का मेहमाँ है कोई दम का या कोई साअ'त का वो हाल अब देखा नहीं जाता तिरे बीमार का ख़ूबसूरत गौहर-ए-ख़ुश-आब की हर इक लड़ी सिलसिला कैसा बँधा है आँसुओं के तार का घर किया है ऐ सनम उस में तिरी तस्वीर ने बंद होना ग़ैर-मुमकिन दीदा-ए-दीदार का ज़िंदगानी का मज़ा क्या क्या नहीं दिखला गया इस मिरे दिल के मकाँ में छुप के आना यार का कीजिए नज़्र-ए-बुताँ अब शौक़ से ईमान-ओ-दिल क्या पहनना सहल समझा आप ने ज़ुन्नार का खोल कर पुर-कैफ़ आँखें देखते हैं वो इधर लीजिए वो खुल गया अब ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार का देखने को ताब क्या हो तालिब-ए-दीदार का नूर से शम्स-ओ-क़मर में तेरे ही रुख़्सार का आसियों के जुर्म को वो हश्र में इफ़्शा करे ऐ 'जमीला' काम ये हरगिज़ नहीं हुशियार का