जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए मेरी दस्तक से तो तुम और भी प्यारे निकल आए उस के पानी ने दिया हुक्म तो हम डूब गए उस की मिट्टी ने पुकारा तो किनारे निकल आए इश्क़ पहुँचा जो मिरे जिस्म के दरवाज़े पर ख़ैर-मक़्दम के लिए ख़ून के धारे निकल आए उस की आँखों ने यक़ीं कुछ न दिलाया फिर भी शेर कहने के लिए कुछ तो इशारे निकल आए शहर की भीड़ में गुम हो गए सारे मा'शूक़ ख़ैर से इश्क़ मियाँ तुम तो हमारे निकल आए 'फ़रहत-एहसास' तो बस डूब गए थे लेकिन बीच मंजधार में दो-चार किनारे निकल आए