खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का मिसाल-ए-अब्र चला कारवाँ बहारों का न मुझ से पूछ शब-ए-हिज्र दिल पे क्या गुज़री ये देख हाल है क्या मेरे ग़म-गुसारों का नई बहार हँसे इक नया चमन खिल जाए समझ सके कोई मतलब अगर इशारों का शब-ए-सियाह के लम्हे गुज़ार लेने दो घड़ी घड़ी न करो ज़िक्र माह-पारों का दिखाई देती है इस तरह रूप-रंग की बात फ़ज़ा में रक़्स हो जिस तरह अब्र-पारों का हुआ न राह में हाइल कोई शगूफ़ा भी रवाँ-दवाँ ही रहा क़ाफ़िला बहारों का मुझे भी अहल-ए-जहाँ भूल जाएँगे 'शहज़ाद' किसे ख़याल है डूबे हुए सितारों का