जिस्म सियाही बनाऊँगा By Ghazal << लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही स... कुछ तौर नहीं बचने का ज़िन... >> जिस्म सियाही बनाऊँगा तेरा हर्फ़ सजाऊँगा तू बहता पानी बन जा मैं मछली बन जाऊँगा कल मौसम की हथेली पर नाम तिरा खुदवाऊँगा अपना ग़ुबार उड़ा कर मैं कुछ तस्वीर बनाऊँगा किसी किवाड़ की आड़ में अब तुझ को ला के छुपाऊँगा तिरे बदन के पानी से मैं सूरज चमकाऊँगा Share on: