जिस्म तन्हा है रूह प्यासी है सोचिए तो बला ज़रा सी है मैं हूँ बच्चे की खिलखिलाती हँसी और तू ओढ़ी हुई उदासी है कश्तियों को भी था ये अंदेशा इस समुंदर की रूह प्यासी है इन नए मौसमों पे ला'नत हो इन की ताज़ी अदा भी बासी है तुम वहाँ कुछ ठहर भी सकते हो इस की आँखों में कुछ हया सी है इश्क़ हम इस लिए भी करते रहे ये लगातार ख़ुद-शनासी है