जिस्म-ओ-जाँ रखता हूँ लेकिन ये हवाला कुछ नहीं आप की निस्बत है सब कुछ मेरा अपना कुछ नहीं इश्क़ जिस कूचे में रहता है वो कूचा है बहिश्त अक़्ल जिस दुनिया में रहती है वो दुनिया कुछ नहीं कितने सादा-लौह थे अगले ज़माने के वो लोग कह दिया जो दिल में आया दिल में रक्खा कुछ नहीं देखने वाला कोई होता तो हम भी खेलते थे तमाशे सैकड़ों लेकिन दिखाया कुछ नहीं आ के जो सैराब करती है ज़मीन-ए-खुश्क को अस्ल में है मौज-ए-दरिया शोर-ए-दरिया कुछ नहीं इस तरफ़ है मेरी वहशत उस तरफ़ तेरा जमाल वो हक़ीक़त दाइमी है ये तमाशा कुछ नहीं जाने किस की जुस्तुजू में थी हयात-ए-मुख़्तसर उम्र-भर भागा किए और हाथ आया कुछ नहीं ये हसीं मंज़र ये बहर-ओ-बर ये सब माह-ओ-नुजूम तेरी क़ुदरत का करिश्मा हैं किसी का कुछ नहीं पेश करना है तो उस को पेश कीजे दिल 'ज़िया' यार की नज़रों में दुनिया का असासा कुछ नहीं