जीता रहूँ कि हिज्र में मर जाऊँ क्या करूँ तू ही बता मुझे मैं किधर जाऊँ क्या करूँ है इज़्तिराब-ए-दिल से निपट अर्सा मुझ पे तंग आज उस तलक ब-दीदा-ए-तर जाऊँ क्या करूँ हैरान हूँ कि क्यूँके ये क़िस्सा चुके मिरा सर रख के तेग़ ही पे गुज़र जाऊँ क्या करूँ बतला दे तू ही वा-शुद-ए-दिल का मुझे इलाज गुलशन में ऐ नसीम-ए-सहर जाऊँ क्या करूँ बैठा रहूँ कहाँ तलक उस दर पे 'मुसहफ़ी' अब आई शाम होने को घर जाऊँ क्या करूँ