तिरी ज़ुल्फ़ ज़ुन्नार का तार है कि जिस तार में दिल गिरफ़्तार है करिश्मे के लश्कर में वो शाह-ए-हुस्न सफ़-ए-ख़ूब-रूयाँ का सरदार है तलत्तुफ़ सीं पूछेगा कब दर्द-ए-दिल सितम-गर है सरकश है अय्यार है जिसे दिल-ख़राशी नहीं इश्क़ की तरीक़-ए-मोहब्बत में बे-कार है सजन लुत्फ़ कर नर्गिस-ए-बाग़ पर तिरी चश्म-ए-मय-गूँ का बीमार है शिफ़ा दे मुझे मरहम-ए-वस्ल सूँ जिगर पर मिरे हिज्र का वार है शब-ए-हिज्र में गुल-बदन के 'सिराज' नज़र में मिरी शम्अ जिऊँ ख़ार है