जीते जी तक शम्अ' पर जैसा करे परवाना रक़्स देख तुज को वोहीं करता है तिरा दीवाना रक़्स दैर पर से गर गुज़र होए सनम तो क्या अजब बरहमन तो क्या करें सब साहब-ए-बुत-ख़ाना रक़्स 'इम्तियाज़' उस हुस्न पर हो वैसे ज़ोहरा मुश्तरी महफ़िल-ए-अफ़्लाक पर करतीं हैं बे-ताबाना रक़्स मय-कशी करने अगर जावे तो मीना जाम-ओ-ख़ुम मुग़बचा क्या और फ़ुग़ाँ मिल कर करे मय-ख़ाना रक़्स सब जनावर आ ख़ुशी में तू अगर चाहे शिकार ता ब-हद कावी ज़मीं तक ही करे जानाना रक़्स मेहर-ओ-मह और अंजुम ही सारे ये सब अफ़्लाक के यक-ब-यक अपना अपना दिखावें बन के सब मस्ताना रक़्स सैर का कर क़स्द गर जावे चमन में तू सनम हर कली मीना हो हर ग़ुंचा करे पैमाना रक़्स