जितने दिन का साथ लिखा था सात रहे अब कुछ दिन तो आँखों में बरसात रहे अब ना-शुक्री करना और मोआ'मला है हासिल हम को इश्क़ रहा समरात रहे अन्दर की देवी ने ये चुम्कार कहा नर्म है दिल तो काहे लहजा धात रहे तुम वैसे के वैसे हो तो ला-यानी माना क़ुर्बानी भी की अर्फ़ात रहे एक अकेले शख़्स का काम नहीं लगता शामिल उस के साथ कई जिन्नात रहे एक भी दिल जो तुम तस्ख़ीर न कर पाए क्या पाया जो हासिल काएनात रहे हम थे बेचैनी के हल्क़े और सुकूत दिन में थोड़ी छूट मिली तो रात रहे शाहों की शह-ख़र्ची कम न हो पाई हम जैसों के जैसे थे हालात रहे 'हसरत' इन आँखों में चश्मे फूट पड़े जितना चुप रह सकते थे जज़्बात रहे