ख़ुद अपना हाथ बस थामे हुए मैं रह गया हूँ सदी का दुख हूँ जो आँखों से अपनी बह गया हूँ कभी भी और किसी का हक़ हड़प करना नहीं है यही बच्चों से अपने मरते मरते कह गया हूँ वहाँ से है ग़ुलामों का कोई जर्रार लश्कर मगर इस सम्त से लड़ने को मैं इक शह गया हूँ ये सच है अपने बच्चों के लिए था एक ढारस चला आया है वो तूफ़ान ख़ुद पर ढह गया हूँ ख़ुद अपने आप पर तन्क़ीद की है आप मैं ने कहूँ क्या आप अपनी बात हँस कर सह गया हूँ मज़े ले ले के पढ़ते हो खुला ख़त हूँ मैं कोई किया मशहूर उस ने मैं यहाँ से तह गया हूँ हथेली में समोया उस ने उस को प्यास भी थी मगर 'हसरत' मैं दर्ज़ों में से फिर भी बह गया हूँ