जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख फिर अपनी ख़्वाहिशों को गिरफ़्तार कर के देख दीवाना है जुनूँ में गुज़रता ही जाएगा तू रास्तों को चाहे तो दीवार कर के देख यूसुफ़ भी है यहाँ पे ज़ुलेख़ा-ए-वक़्त भी बस मिस्र की सी गर्मी-ए-बाज़ार कर के देख ऐ मोहतसिब रिवायत-ए-कुहना के नक़्श में ता'मीर करता जाऊँगा मिस्मार कर के देख शायद इसी में सारे मसाइल का हल मिले सरदार है जो उस को सर-ए-दार कर के देख 'जावेद' गर है ख़्वाहिश-ए-तस्कीन-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ रुख़ अपना जानिब-ए-शह-ए-अबरार कर के देख