जो अहरमन से पड़ा वास्ता मफ़र न हुआ किसी भी बात पे राज़ी वो फ़ित्ना-गर न हुआ न सोचा पहले ये उश्शाक़ कहते फिरते हैं करेंगे क्या कोई वा'दा वफ़ा अगर न हुआ ये बेड़ा ग़र्क़ हुआ जिस की ना-ख़ुदाई में वो कह रहा है कोई मुझ सा दीदा-वर न हुआ करें जो वा'दा वो अब दस हज़ार साल का हो हज़ार साल का दावा तो मो'तबर न हुआ ये कूचा इश्क़ का है इश्क़ का अरे 'नज़मी' इधर न होगा कभी यास का गुज़र न हुआ