ख़ुश हैं इनआ'म मिला हो जैसे दर्द भी कोई दवा हो जैसे ऐसे जीते हैं सज़ा हो जैसे जुर्म संगीन किया हो जैसे तल्ख़ी-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ क्या कहिए ज़ह्र का घूँट पिया हो जैसे अपनी तहज़ीब से दूरी ऐ दोस्त जिस्म से रूह जुदा हो जैसे यूँ गुज़र जाता है कुछ अहद-ए-शबाब मौजा-ए-बाद-ए-सबा हो जैसे इश्क़ क्या हुस्न भी है नौहा-कुनाँ मातम-ए-मर्ग-ए-वफ़ा हो जैसे साठवीं सालगिरह की तस्वीर कोई मंज़िल पे लुटा हो जैसे ज़हर-ए-ग़म पीते रहो यूँ 'नज़मी' ज़हर-ए-ग़म आब-ए-बक़ा हो जैसे