जो अपने ख़्वाब की तकमील करना चाहते हैं मिरे मिज़ाज को तब्दील करना चाहते हैं कोई सुने न सुने फिर भी हर सदा अपनी हम इन फ़ज़ाओं में तहलील करना चाहते हैं ये चाहते हैं कि हर अश्क इक चराग़ बने हम अपनी आँखों को क़िंदील करना चाहते हैं वो जिन की कोई भी तावील मो'तबर न हुई वो पेश फिर नई तावील करना चाहते हैं जो मुंतख़ब हुए तामील-ए-हुक्म करने को हम उन के हुक्म की तामील करना चाहते हैं