ख़्वाब में हाथ छुड़ाती हुई तक़दीर का दुख आँख से लिपटा है अब तक उसी ता'बीर का दुख कोशिशें कर के बहर-हाल मुसव्विर हारा शोख़ रंगों में छुपा ही नहीं तस्वीर का दुख उस की आँखों में नमी ख़त्म नहीं हो सकती पढ़ लिया जिस ने भी हँसती हुई तहरीर का दुख क़ैद-ख़ाने में यही सोच के वापस आया मुझ को मालूम है तन्हा पड़ी ज़ंजीर का दुख महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न यूँही रहे बाग़-ओ-बहार नस्ल-दर-नस्ल चले मीर-तक़ी-'मीर' का दुख हाथ कट जाने पे शायद नहीं होता 'नादिर' जो मिरे दिल को है टूटी हुई शमशीर का दुख