जो अपने सर पे सर-ए-शाख़-ए-आशियाँ गुज़री किसी के सर पे क़फ़स में भी वो कहाँ गुज़री उसी की याद है महताब-ए-शाम-हा-ए-फ़िराक़ वो एक शब कि सर-ए-कू-ए-मह-वशाँ गुज़री जहाँ में शौक़ कभी राएगाँ नहीं जाता मैं क्यूँ कहूँ कि मिरी उम्र राएगाँ गुज़री जबीन-ए-शौक़ हमारी गली गली में झुकी कि हर गली से तिरी ख़ाक-ए-आस्ताँ गुज़री