जो ब-रंग-ए-सहर दिखाई दिया उस का हुस्न-ए-नज़र दिखाई दिया जिस तरफ़ भी निगाह दौड़ाई सिर्फ़ रक़्स-ए-शरर दिखाई दिया सब के हाथों में आ गए पत्थर जब शजर बा-समर दिखाई दिया उम्र भर जिस का इंतिज़ार रहा मुझ से वो बे-ख़बर दिखाई दिया उस की ख़ुशियाँ न पूछिए जिस को बा'द मुद्दत के घर दिखाई दिया दिल से यक-बारगी दुआ निकली जब परेशाँ बशर दिखाई दिया आज तेरी गली में चर्चा है एक आशुफ़्ता-सर दिखाई दिया बात महलों की कर रहा था मगर उस के अंदर खंडर दिखाई दिया कर के मुझ को असीर-ए-ग़म 'अजमल' वो सितमगर न फिर दिखाई दिया