ख़ुद को सँवार लेने की हाजत उसे भी थी शायद कि रंग-ओ-बू की ज़रूरत उसे भी थी मजबूरियों ने कर दिया पाबंद कुछ उसे रस्म-ए-वफ़ा निभाने की चाहत उसे भी थी दिल तोड़ कर हमारा चला तो गया मगर नाकाम हसरतों की नदामत उसे भी थी यूँ फेर ली निगाह कि पहचानता न हो कितनी शदीद मुझ से रिफ़ाक़त उसे भी थी किस के ख़याल-ओ-ख़्वाब की दहलीज़ पर सदा हर शब गुज़ारने की इजाज़त उसे भी थी किरदार की बुलंदी का वो भी है मो'तरिफ़ माना कि तेरी ज़ात से वहशत उसे भी थी गरचे अना-परस्त वो 'अजमल' बला का है बेबाकियों पे मेरी तो हैरत उसे भी थी