जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई सुना रहा है फ़साने फ़रेब-ए-गोयाई नए चराग़ सर-ए-रहगुज़र जला आई हवा-ए-निकहत-ए-गुल थी कि मेरी बीनाई तू गर्म रात में ठंडी हवा का झोंका था ज़रा क़रीब से गुज़रा तो नींद सी आई जो बात तुझ में है वो दूसरों में क्या मिलती जो बात मुझ में है तू ने भी वो कहाँ पाई वो याद आए तो दिल और हो गया वीराँ वो मिल गए तो बढ़ा और दर्द-ए-तन्हाई बहुत दिनों से मिरा दिल उदास भी तो नहीं बहुत दिनों से तिरी याद भी नहीं आई 'सलीम' क़ुर्ब से भी तिश्नगी नहीं जाती ये बात साहिल-ओ-दरिया ने मुझ को समझाई