शमशीर है सिनाँ है किसे दूँ किसे न दूँ इक जान-ए-ना-तवाँ है किसे दूँ किसे न दूँ मेहमान इधर हुमा है उधर है सग-ए-हबीब इक मुश्त उस्तुखाँ है किसे दूँ किसे न दूँ दरबाँ हज़ार उस के यहाँ एक नक़्द-ए-जाँ माल इस क़दर कहाँ है किसे दूँ किसे न दूँ बुलबुल को भी है फूलों की गुलचीं को भी तलब हैरान बाग़बाँ है किसे दूँ किसे न दूँ सब चाहते हैं उस से जो वादा विसाल का कहता है वो ज़बाँ है किसे दूँ किसे न दूँ शहज़ादी दुख़्त-ए-रज़ के हज़ारों हैं ख़्वास्त-गार चुप मुर्शिद-ए-मुग़ाँ है किसे दूँ किसे न दूँ यारों को भी है बोसे की ग़ैरों को भी तलब शश्दर वो जान-ए-जाँ है किसे दूँ किसे न दूँ दिल मुझ से माँगते हैं हज़ारों हसीं 'अमीर' कितना ये अरमुग़ाँ है किसे दूँ किसे न दूँ