जो बात है तेरी सो निराली उश्शाक़-कुशी नई निकाली तीर-ए-मिज़्गान भी है उस पर अबरू की तेग़ भी सँभाली समझे है ज़ाहिरन वो दिल की देता है जो दर-जवाब गाली नाख़ुन-ज़न हैं बदल ये अंगुश्त ये सिर्फ़ नहीं हिना की लाली हैं रोज़-ए-अज़ल से हम गिरफ़्तार देखी न कभू फ़राग़-बाली तू तो है ही प मैं भी प्यारे हूँ बे-परवाई ला-उबाली किस तरह दिखाऊँ आह तुझ को मैं अपनी ये ख़राब-हाली हम हैं बंदे दनी ओ असफ़ल और आप का है मिज़ाज आली आईना-ए-दिल में महव हो कर सूरत ही कुछ और अब निकाली है तुझ से ही आशिक़ों की ख़ूबी या हज़रत-ए-'दर्द' मेरे वाली दीवान-ए-'असर' तमाम देखा है उस में हर एक शेर आली