जो बढ़ के दिन में ग़रीबों के काम करता है सुना है रात वही क़त्ल-ए-आम करता है फ़क़ीर-ए-शहर में क्या बात है ख़ुदा जाने अमीर-ए-शहर बड़ा एहतिराम करता है ज़ईफ़ बाप से जो बात तक नहीं करता अमीर-ए-शहर को झुक कर सलाम करता है ख़मोशियों का ये संग-ए-गिराँ भी बोलेगा अभी तो माल अभी ज़र कलाम करता है 'शुऐब' नार-ए-जहन्नम का ख़ौफ़ क्या हो उसे जो ज़िक्र-ए-हज़रत-ए-ख़ैर-उल-अनाम करता है