आप तरकश में अगर तीर लिए बैठे हैं हम भी फ़रियाद में तासीर लिए बैठे हैं हम बग़ल में दिल-ए-दिल-गीर लिए बैठे हैं ग़म की मुँह बोलती तस्वीर लिए बैठे हैं ऐसी वहशत के निसार ऐसे जुनूँ के सदक़े वो मिरे वास्ते ज़ंजीर लिए बैठे हैं शायद ऐ शौक़-ए-शहादत तिरी क़िस्मत खुल जाए सुन रहा हूँ कि वो शमशीर लिए बैठे हैं कोई सुनता भी है यूँ हम जो किसी के आगे क़िस्सा-ए-शूमी-ए-तक़दीर लिए बैठे हैं ऐ जुनूँ तोड़ के अब हम भी बहुत पछताए हाथ में पाँव की ज़ंजीर लिए बैठे हैं सौ जगह होती है हम को ख़लिश-ए-ग़म महसूस दिल में इक तीर के सौ तीर लिए बैठे हैं आप अगर हम से हम-आग़ोश नहीं हैं तो न हों दिल में हम आप की तस्वीर लिए बैठे हैं क़त्ल के बा'द अब उन को भी है सदमा 'नुदरत' लाशा-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर लिए बैठे हैं