जो बहर-ए-वतन मरने को तय्यार नहीं है जीने का किसी तौर वो हक़दार नहीं है क्या फ़ाएदा इस शिकवा-ओ-फ़र्याद-ओ-फ़ुग़ाँ से सुनने को जिसे कोई भी तय्यार नहीं है वाइ'ज़ से कहो जा के करे वा'ज़ कहीं और कोई भी तो इस बज़्म में हुशियार नहीं है करनी है बपा फिर मुझे इक शोरिश-ए-दौराँ ऐ दोस्तो नाला मिरा बे-कार नहीं है जिस जा पे बसें ग़ैरत-ए-मिल्ली के मुहाफ़िज़ जन्नत है वो ज़िंदान की दीवार नहीं है भड़केंगे अभी और भी जज़्बात के शो'ले आतिश ये तह-ए-ख़ाक है बेदार नहीं है 'बिस्मिल' ने इशारों में कही दिल की कहानी भरपूर जवानी की ये गुफ़्तार नहीं है