दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा जो बढ़ के ताईद-ए-हक़ करेगा वही सज़ावार-ए-दार होगा बिला-ग़रज़ सादा सादा बातों से डाल दें रस्म दोस्ती की जो सिलसिला इस तरह चलेगा वो लाज़िमन पाएदार होगा चलो मोहब्बत की बे-ख़ुदी के हसीन ख़ल्वत-कदे में बैठें अजीब मसरूफ़ियत रहेगी न ग़ैर होगा न यार होगा तिरे गुलिस्ताँ की आबरू है महक तिरी इन्फ़िरादियत की तू कस्मपुर्सी से बुझ भी जाए तो ग़ैरत-ए-नौ-बहार होगा जहाँ न तू हो न कोई हमदर्द हो न कोई शरीफ़ दुश्मन मैं सोचता हूँ मुझे वो माहौल किस तरह साज़गार होगा बहिश्त में भी जनाब-ए-ज़ाहिद तुम्हें न तरजीह मिल सकेगी वहाँ भी ख़ुश-ज़ौक़ आसियों का तपाक से इंतिज़ार होगा 'अदम' की शब-ख़ेज़ियों के अहवाल यूँ सुनाते हैं उस के महरम कि सुनने वाले ये मान जाएँ कोई तहज्जुद-गुज़ार होगा