जो बीत गई उस की ख़बर है कि नहीं है देखो मिरे तन पर मिरा सर है कि नहीं है इस शहर-ए-नदामत से जो आए हैं पलट कर दर-पेश नया उन को सफ़र है कि नहीं है यारों को बहुत प्यार है ज़िंदान-ए-वफ़ा से लेकिन किसी दीवार में दर है कि नहीं है मिलती हो ज़िया जिस को चराग़ों की लवों से उस शहर में ऐसा कोई घर है कि नहीं है चेहरे पे सजा लाया हूँ मैं दिल की सदाएँ दुनिया में कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं है सूरज की गुज़रगाह बने शाख़ न जिस की ऐसा कोई रस्ते में शजर है कि नहीं है बरसात में कोयल सी जहाँ कूक रही थी आबाद वो ख़्वाबों का नगर है कि नहीं है टूटी हुई मस्जिद मैं खड़ा देख रहा हूँ महफ़ूज़ शिवाले का गजर है कि नहीं है क्यूँ तेरा गरेबाँ है 'क़तील' अब भी सलामत कुछ तुझ पे नई रुत का असर है कि नहीं है