वफ़ा के बाब में अपना मिसालिया हो जाऊँ तिरे फ़िराक़ से पहले ही मैं जुदा हो जाऊँ मैं अपने-आप को तेरे सबब से जानता हूँ तिरे यक़ीन से हट कर तो वाहिमा हो जाऊँ तअल्लुक़ात के बर्ज़ख़ में ऐन-मुमकिन है ज़रा सा दुख वो मुझे दे तो मैं तिरा हो जाऊँ अभी मैं ख़ुश हूँ तो ग़ाफ़िल न जान ख़ुद से मुझे न जाने कौन सी लग़्ज़िश पे मैं ख़फ़ा हो जाऊँ अभी तो राह में हाइल है आरज़ू की फ़सील ज़रा ये इश्क़ सिवा हो तो जा-ब-जा हो जाऊँ अभी तो वक़्त तनफ़्फ़ुस के साथ चलता है ज़रा ठहर कि मैं इस जिस्म से रिहा हो जाऊँ अभी तो मैं भी तिरी जुस्तुजू में शामिल हूँ क़रीब है कि तमन्ना से मावरा हो जाऊँ ख़मोशियाँ हैं अंधेरा है बे-यक़ीनी है न हो जो याद भी तेरी तो मैं ख़ला हो जाऊँ किसी से मिल के बिछड़ना बड़ी अज़िय्यत है तो क्या मैं अहद-इ-तमन्ना का फ़ासला हो जाऊँ तिरे ख़याल की सूरत-गरी का शौक़ लिए मैं ख़्वाब हो तो गया हूँ अब और क्या हो जाऊँ ये हर्फ़ ओ सौत का रिश्ता है ज़िंदगी की दलील ख़ुदा वो दिन न दिखाए कि बे-सदा हो जाऊँ वो जिस ने मुझ को तिरे हिज्र में बहाल रखा तू आ गया है तो क्या उस से बेवफ़ा हो जाऊँ