जो भी ग़ुंचा तिरे होंटों पे खिला करता है वो तिरी तंगी-ए-दामाँ का गिला करता है देर से आज मिरा सर है तिरे ज़ानू पर ये वो रुत्बा है जो शाहों को मिला करता है मैं तो बैठा हूँ दबाए हुए तूफ़ानों को तू मिरे दिल के धड़कने का गिला करता है रात यूँ चाँद को देखा है नदी में रक़्साँ जैसे झूमर तिरे माथे पे हिला करता है जब मिरी सेज पे होता है बहारों का नुज़ूल सिर्फ़ इक फूल किवाड़ों में खुला करता है कौन काफ़िर तुझे इल्ज़ाम-ए-तग़ाफ़ुल देगा जो भी करता है मोहब्बत से गिला करता है लोग कहते हैं जिसे नील कँवल वो तो 'क़तील' शब को इन झील सी आँखों में खुला करता है