जो भी लिखना था बरमला लिखते या'नी तुम अपना मुद्दआ' लिखते वाजिब-उल-एहतिराम लिख तो दिया और क्या आप को ख़ुदा लिखते चाहता था अमीर-ए-शहर यही क़त्ल को हम भी वाक़िआ' लिखते लिख दिया जिस के दिल में जो आया तुम मगर दिल को आइना लिखते अपनी बेताबियाँ लिखीं 'ज़ाहिद' ख़त में क्या इस के मा-सिवा लिखते