जो भी तेरी आँख को भा जाएगा जान-ए-जाँ महबूब समझा जाएगा नाम ज़ुल्फ़ों का न लेना भूल कर दिल का पंछी दाम में आ जाएगा वक़्त के मक़्तल में हम हैं दोस्तो वक़्त इक दिन हम को भी खा जाएगा वो समझता है मिरी हालत मगर मैं अगर कह दूँ तो शरमा जाएगा कुछ न कहना राज़-दाँ बस देखना आँख से वो मुद्दआ पा जाएगा कह रहे हैं वो न 'बिस्मिल' यूँ तड़प तुझ पे ज़ालिम दिल मिरा आ जाएगा