जो चाक हैं दिल के ज़ख़्मों में सीने ही पड़े तो सी लेंगे दुनिया में हमें जब जीना है जिस हाल में होंगे जी लेंगे आज़ार-ए-मोहब्बत का दरमाँ क्या होगा नासेह बातों से हम तल्ख़ नसीहत सुन लेंगे हम ज़हर के साग़र पी लेंगे वो हश्र-ब-दामाँ हैं तो क्या हम ज़ुल्म-ओ-सितम को सहते हैं जब उन का हो कर जीना है जिस तरह भी होगा जी लेंगे है तेरा ये मंशा ऐ ज़ालिम हर ज़ुल्म सहें और कुछ न कहें हम तेरी ख़ातिर दुश्मन-ए-जाँ उमडे हुए आँसू पी लेंगे उन शोख़ निगाहों के सदक़े क्या तीर पे तीर बरसते हैं वो हम को 'सहाफ़ी' देखा करें हम तीरों में भी जी लेंगे