काम-जूई राह-ओ-रस्म-ए-'आम है जाँ-निसारों को वफ़ा से काम है हुस्न की फ़ित्ना-निगाही कम नहीं 'इश्क़ ही पर क्यों ये सब इल्ज़ाम है ख़ून-ए-अहल-ए-दिल से जो रंगीन है ऐसी दुनिया से मुझे क्या काम है आप और हों मेरी बर्बादी पे शाद क्या मोहब्बत का यही अंजाम है साहब-ए-ज़ौक़-ए-नज़र तो हो कोई हम ने माना तेरा जल्वा 'आम है देख कर दार-ओ-रसन हिम्मत न हार मंज़िल-ए-मक़्सूद बस दो-गाम है ज़र्रे-ज़र्रे में ये जोश-ए-इंक़लाब उस निगाह-ए-‘इश्वा-गर का काम है वा'इज़-ए-ख़ुश-गो की बातों पर न जा उस के मय-ख़ाने में ख़ाली जाम है देख कर तेवर तिरे बदले हुए सारी दुनिया लर्ज़ा-बर-अंदाम है है वो इक तख़्ईल-ए-रंगीं की बहार वाइ'ज़ों में जिस का जन्नत नाम है दानिश-ए-इमरोज़ के सरमाया-दार तेरी फ़िक्र-ए-सूद-ए-'आलम ख़ाम है हुस्न की 'अख़्तर' ग़लत-बख़्शी न पूछ बुल-हवस पर लुत्फ़ है इनआ'म है