जो चाहती थी ये पागल हवा न होने दिया कभी चराग़ को लौ से जुदा न होने दिया जो एक शख़्स ज़माने में था अज़ीज़ मुझे उसे भी उस की अना ने मिरा न होने दिया ये दिल है तेरी अमानत सो आज तक हम ने उदासियों में इसे मुब्तला न होने दिया त'अल्लुक़ात का वो फूल कब का सूख चुका पर उस की ख़ुशबू को दिल से जुदा न होने दिया ऐ इश्क़ हम को पता है कि इस ज़माने ने जो हम पे फ़र्ज़ था तेरा अदा न होने दिया अजब है मौत का ये ख़ौफ़ उम्र-भर जिस ने कि ज़िंदगी से मिरा राब्ता न होने दिया बना के अपना मिटाया मिरे वजूद को यूँ कि उस ने ख़ुद से मिरा सामना न होने दिया