जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए By Ghazal << ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार ... जाँ-सिपारी के भी अरमाँ ज़... >> जो दाग़ बन के तमन्ना तमाम हो जाए हमें तो ख़ून भी रोना हराम हो जाए शबाब-ए-दर्द मिरी ज़िंदगी की सुब्ह सही पियूँ शराब यहाँ तक कि शाम हो जाए यही है मस्लहत इंतिहा-ए-राज़ 'अख़्तर' जहाँ में रस्म-ए-मोहब्बत न आम हो जाए Share on: