जो दर्द-ए-दिल कहो आहिस्ता बोलो ख़ुशी से ग़म सहो आहिस्ता बोलो फ़ुग़ाँ करना भी जुर्म-ए-आशिक़ी है बड़े चौकस रहो आहिस्ता बोलो तुम्हारी आह भी है बार-ए-ख़ातिर तकल्लुम के शहो आहिस्ता बोलो दर-ओ-दीवार भी होते हैं जासूस कोई सुनता न हो आहिस्ता बोलो अब आह-ए-ज़ेर-ए-लब है बज़्म की रस्म इसी रौ में बहो आहिस्ता बोलो सिरहाने दिल ही दिल में बात करना हमारे दिल-दहो आहिस्ता बोलो सदा सर फोड़ कर आएगी वापस यही चाबुक सहो आहिस्ता बोलो