जो देखे थे वो सारे ख़्वाब रुख़्सत हो गए हैं हमारे सब अदब आदाब रुख़्सत हो गए हैं ये दुनिया जिस घराने के सबब तू ने बनाई तिरी दुनिया से वो बे-आब रुख़्सत हो गए हैं निगहबाँ थे जो साहिल पर हमारी कश्तियों के वो सब के सब सर-ए-गिर्दाब रुख़्सत हो गए हैं पड़ा है जब क़बीले पर हमारे वक़्त कोई हमारे मो'तबर अहबाब रुख़्सत हो गए हैं तुलू-ए-सुब्ह की अफ़्वाह पर महफ़िल से उस की हज़ारों अंजुम-ओ-महताब रुख़्सत हो गए हैं