जो ढाँपें तन को वो जामे कहाँ हैं ज़रा ढूँडो नसब-नामे कहाँ हैं निशान-ए-अज़्मत-ए-अस्लाफ़ हैं जो बुज़ुर्गों के वो अम्मामे कहाँ हैं दिल-ए-वहशत-असर कुछ तो बता दे ख़मोशी क्यों है हंगामे कहाँ हैं निशाँ मंज़िल का शायद उन में पाएँ इधर लाओ सफ़र-नामे कहाँ हैं लिखा करते थे जो 'बेबाक' हो कर सुख़न-दानों के वो ख़ामे कहाँ हैं