जो दिल ने कह दी है वो बात अन-कही भी न थी ये मौज तो तह-ए-दरिया कभी रही भी न थी झुकें जो सोचती पलकें तो मेरी दुनिया को डुबो गई वो नदी जो अभी बही भी न थी सरक गया कोई साया सिमट गया कोई दूर किसी के अक्स की प्यासी कशिश सही भी न थी सुनी जो बात कोई अन-सुनी तो याद आया वो दिल कि जिस की कहानी कभी कही भी न थी नगर नगर वही आँखें पस-ए-ज़माँ पस-ए-दर मिरी ख़ता की सज़ा उम्र-ए-गुमरही भी न थी किसी की रूह तक इक फ़ासला ख़याल का था कभी कभी तो ये दूरी रही-सही भी न थी नशे की रौ में ये झलका है क्यूँ नशे का शुऊ'र इस आग में तो कोई आब-ए-आगही भी न थी ग़मों की राख से 'अमजद' वो ग़म तुलूअ' हुए जिन्हें नसीब इक आह-ए-सहर-ए-गही भी न थी