जो दिल पे गुज़रती है दुनिया उसे क्या जाने इस राज़ को मैं जानूँ या मेरा ख़ुदा जाने जो तेरे इशारे को पैग़ाम-ए-क़ज़ा जाने वो तीर को क्या जाने शमशीर को क्या जाने क्या तुझ को सुनाऊँ मैं अफ़्साना-ए-दर्द-ए-दिल तू दर्द को क्या समझे तू दर्द को क्या जाने थी दिल से ग़रज़ उस को दिल छीन लिया उस ने अब रोऊँ कि तड़पूँ मैं ज़ालिम की बला जाने 'नुदरत' को तो दुनिया ही अच्छी नज़र आती है जो ख़ुद हो बुरा सब से वो किस को बुरा जाने