जो डूबते हुए बाज़ू निकाल लेता है समुंदरों में भी टापू निकाल लेता है इधर मैं उस की हथेली पे फूल रखता हूँ उधर वो जेब से बिच्छू निकाल लेता है इसी लिए मैं गले से नहीं लगाता उसे वो पैरहन से भी ख़ुशबू निकाल लेता है कुछ ऐसी प्यास का मारा हुआ है बे-सबरा के जाम देख के चुल्लू निकाल लेता है उसी के हाथ ख़ज़ाने असर के लगते हैं दुआ के साथ जो आँसू निकाल लेता है किसी को रक़्स सिखाता है वक़्त का पहिया किसी के पाँव से घुँगरू निकाल लेता है इसी लिए मैं सुनाता नहीं ग़ज़ल उस को वो शेर सुन के तराज़ू निकाल लेता है किसी के काम ही आएगा जंग में 'हर्षित' बदन से तीर अगर तू निकाल लेता है