जो दुश्मन है उसे हमदम न समझो नमक को ज़ख़्म का मरहम न समझो सुकूँ मिलता है दिल से दिल को लेकिन हर इक साग़र को जाम-ए-जम न समझो जो पी लोगे तो मिट जाना पड़ेगा ये है ज़हराब-ए-ग़म ज़मज़म न समझो तुम अपने दामन-ए-हिर्स-ओ-हवस को मिसाल-ए-दामन-ए-मरियम न समझो न हो अपनी ख़ताओं पर जो नादिम उसे हम-मशरब-ए-आदम न समझो क़रीना ये भी है इज़हार-ए-ग़म का तबस्सुम को हरीफ़-ए-ग़म न समझो हों ज़र्रे लाख रौशन फिर भी उन को जवाब-ए-नय्यर-ए-आज़म न समझो घटा ग़म की है रू-ए-ज़िंदगी पर फ़ज़ा-ए-गेसू-ए-बरहम न समझो क़यामत हैं 'अज़ीज़' उन की अदाएँ किसी को भी किसी से कम न समझो