मिरे अश्कों की तुग़्यानी से पहले रवाँ कश्ती न थी पानी से पहले तरसती थीं निगाहें रौशनी को चराग़-ए-बज़्म-ए-इंसानी से पहले तड़पता था सरापा दर्द बन कर चमन मेरी निगहबानी से पहले किसे हासिल थी ख़ुशबू आफ़ियत की हमारी बू-ए-सुल्तानी से पहले लहू इंसानियत के बह रहे थे मोहब्बत की जहाँबानी से पहले न सर-चश्मा था कोई ज़िंदगी का मिरे दरिया की तुग़्यानी से पहले सहर बे-नूर थी दुनिया-ए-दिल की मिरे सूरज की ताबानी से पहले ज़ुलेख़ा-ए-ग़ज़ल थी ख़ूब लेकिन अदब के यूसुफ़-ए-सानी से पहले 'अज़ीज़' उस पर है रब की ख़ास रहमत जो दिल झुकता है पेशानी से पहले