जो है ही नहीं वो अभी चाहिए

जो है ही नहीं वो अभी चाहिए
दुआ यूँ न ऐ मुल्तजी चाहिए

यही चाहिए बस यही चाहिए
हमें ज़िंदगी सरवरी चाहिए

दुआ माँगने का सलीक़ा नहीं
इन आँखों में कुछ तो नमी चाहिए

उगे फ़स्ल कैसे ज़मीं बाँझ है
नुमू के लिए कुछ नमी चाहिए

नहीं है पता कल फिर आए न आए
हमें वा'दा-ए-सरमदी चाहिए

जो घड़ना हो कूज़ा भी कोई तुम्हें
तो मिट्टी भी चिकनी छनी चाहिए

बढ़ा जा रहा है जो ख़्वाहिश का जाल
तो फैली हुई ज़िंदगी चाहिए

न हो इतनी गर्मी कि जल जाए बात
लबों पर नुमायाँ तरी चाहिए

ज़बाँ पर न हो शिकवा-ए-तिश्नगी
समुंदर सी दरिया-दिली चाहिए

अगर दुख है पैग़म्बरों की तरह
तो फिर मुझ को पैग़म्बरी चाहिए

गुज़ारे हैं जैसे ये दो चार दिन
हज़ारों बरस ज़िंदगी चाहिए

तलबगार हूँ तेरे जल्वे का मैं
नहीं मुझ को लेकिन ग़शी चाहिए

दरख़्तों से चाहे क़लम काट लो
न साए में उस के कमी चाहिए

भटकता हूँ रस्ते पे मैं इस लिए
कि मंज़िल नहीं गुमरही चाहिए

उड़ो तुम जहाज़ों सा 'नुसरत' मगर
ज़मीं पर नज़र भी जमी चाहिए


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